95 - The Fig - At-Tīn
:1
क़सम है अंजीर की! तथा ज़ैतून की!
:2
एवं "तूरे सीनीन" की क़सम!
:3
और इस शान्ति वाले नगर की क़सम!
:4
निःसंदेह हमने इनसान को सबसे अच्छी संरचना में पैदा किया है।
:5
फिर हमने उसे सबसे नीची हालत की ओर लौटा दिया।
:6
परंतु जो लोग ईमान लाए तथा उन्होंने सत्कर्म किए, उनके लिए समाप्त न होने वाला बदला है।
:7
फिर (ऐ मनुष्य) तुझे कौन-सी चीज़ बदले (के दिन) को झुठलाने पर आमादा करती है?
:8
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं है?