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सूरज की क़सम! तथा उसके ऊपर चढ़ने के समय की क़सम!

2

तथा चाँद की (क़सम), जब वह सूरज के पीछे आए।

3

और दिन की (क़सम), जब वह उस (सूरज) को प्रकट कर दे!

4

और रात की (क़सम), जब वह उस (सूरज) को ढाँप ले।

5

और आकाश की तथा उसके निर्माण की (क़सम)।

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और धरती की तथा उसे बिछाने की (क़सम!)

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और आत्मा की तथा उसके ठीक-ठाक बनाने की (क़सम)।

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फिर उसके दिल में उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी (की समझ) डाल दी।

9

निश्चय वह सफल हो गया, जिसने उसे पवित्र कर लिया।

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तथा निश्चय वह विफल हो गया, जिसने उसे (पापों में) दबा दिया।

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समूद (की जाति) ने अपनी सरकशी के कारण झुठलाया।

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जब उसका सबसे दुष्ट व्यक्ति उठ खड़ा हुआ।

13

तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा : अल्लाह की ऊँटनी और उसके पीने की बारी का ध्यान रखो।

14

परंतु उन्होंने उसे झुठलाया और उस (ऊँटनी) की कूँचें काट दीं, तो उनके पालनहार ने उनके गुनाह के कारण उन्हें पीस कर विनष्ट कर दिया और उन्हें मटियामेट कर दिया।

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और वह उसके परिणाम से नहीं डरता।