ऑल इस्लाम लाइब्रेरी

52 - The Mount - Aţ-Ţūr

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क़सम है तूर (पर्वत) की!

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और एक पुस्तक{2] की जो लिखी हुई है!

:3

ऐसे पन्ने में जो खुला हुआ है।

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तथा बैतुल-मा'मूर (आबाद घर) की!

:5

तथा ऊँची उठाई हुई छत (आकाश) की!

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और लबालब भरे हुए समुद्र की!

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कि निश्चय आपके पालनहार की यातना अवश्चय घटित होने वाली है।

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उसे कोई टालने वाला नहीं।

:9

जिस दिन आकाश बुरी तरह डगमगाएगा।

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तथा पर्वत बहुत तेज़ी से चलेंगे।

:11

तो उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ी तबाही है।

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जो व्यर्थ बातों में पड़े खेल रहे हैं।

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जिस दिन उन्हें ज़ोर से धक्का देकर जहन्नम की आग में धकेला जाएगा।

:14

यही है वह आग, जिसे तुम झुठलाते थे।

:15

तो क्या यह जादू है, या तुम नहीं देख रहे?

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इसमें प्रवेश कर जाओ। फिर सब्र करो या सब्र न करो, तुम्हारे लिए बराबर है। तुम्हें केवल उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम किया करते थे।

:17

निःसंदेह डरने वाले लोग बागों और बड़ी नेमत में हैं।

:18

उसका आनंद लेने वाले हैं जो उनके रब ने उन्हें दिया और उनके रब ने उन्हें दहकती हुई आग की यातना से बचा लिया।

:19

मज़े से खाओ और पियो, उसके बदले जो तुम किया करते थे।

:20

पंक्तिबद्ध तख़्तों पर तकिया लगाए हुए होंगे और हमने उनका विवाह गोरे बदन, काली आँखों वाली औरतों से कर दिया, जो बड़ी-बड़ी आँखों वाली हैं।

:21

और जो लोग ईमान लाए और उनकी संतान ने ईमान के साथ उनका अनुसरण किया, हम उनकी संतान को उनके साथ मिला देंगे तथा उनके कर्मों में उनसे कुछ भी कम न करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति उसके बदले में जो उसने कमाया, गिरवी रखा हुआ है।

:22

तथा हम उन्हें और अधिक फल और मांस देंगे उसमें से जो वे चाहेंगे।

:23

वे उसमें एक-दूसरे से मदिरा का प्याला लेंगे, जिसमें न कोई व्यर्थ बात होगी और न गुनाह में डालना।

:24

तथा उनके आस-पास चक्कर लगाते रहेंगे उन्हीं के बच्चे, जैसे वे छुपाए हुए मोती हों।

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और वे एक-दूसरे की ओर मुतवज्जह होकर आपस में सवाल करेंगे।

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वे कहेंगे : निःसंदेह हम इससे पहले अपने घरवालों में डरने वाले थे।

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तो अल्लाह ने हमपर उपकार किया और हमें विषैली लू की यातना से बचा लिया।

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निःसंदेह हम इससे पहले ही उसे पुकारा करते थे। निश्चय वही तो अति परोपकारी, अत्यंत दयावान् है।

:29

अतः आप नसीहत करें। क्योंकि अपने पालनहार के अनुग्रह से आप न तो काहिन हैं और न ही पागल।

:30

या वे कहते है कि यह एक कवि है जिसपर हम ज़माने की घटनाओं का इंतज़ार करते हैं?

:31

आप कह दें कि तुम प्रतीक्षा करते रहो, मैं (भी) तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वालों में से हूँ।

:32

क्या उन्हें उनकी बुद्धियाँ इस बात का आदेश देती हैं, ये वे स्वयं ही सरकश लोग हैं?

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या वे कहते हैं कि उसने इसे स्वयं गढ़ लिया है? बल्कि वे ईमान नहीं लाते।

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तो फिर वे इस (क़ुरआन) के समान एक ही बात बनाकर ले आएँ, यदि वे सच्चे हैं।

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या वे बिना किसी चीज़ के पैदा हो गए हैं, या वे (स्वयं) पैदा करने वाले हैं?

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या उन्होंने आकाशों और धरती को पैदा किया है? बल्कि वे विश्वास ही नहीं करते।

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या उनके पास आपके पालनहार के ख़ज़ाने हैं, या वही अधिकार चलाने वाले हैं?

:38

या उनके पास कोई सीढ़ी है, जिसपर वे अच्छी तरह सुन लेते हैं? तो उनके सुनने वाले को चाहिए कि वह कोई स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करे।

:39

या उस (अल्लाह) के लिए तो बेटियाँ है और तुम्हारे लिए बेटे?

:40

या आप उनसे कोई पारिश्रमिक माँगते हैं? तो वे उस तावान के बोझ से दबे जा रहे हैं।

:41

या उनके पास परोक्ष (का ज्ञान) है? तो वे उसे लिखते रहते हैं।

:42

या वे कोई चाल चलना चाहते हैं? तो जिन लोगों ने इनकार किया, वही चाल में आने वाले हैं।

:43

या उनका अल्लाह के सिवा कोई पूज्य है? पवित्र है अल्लाह उससे जो वे साझी ठहराते हैं।

:44

और यदि वे आकाश से कोई टुकड़ा गिरता हुआ देख लें, तो कह देंगे कि यह परत दर परत बादल है।

:45

अतः आप उन्हें छोड़ दें, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन को जा मिलें, जिसमें वे बेहोश किए जाएँगे।

:46

जिस दिन न तो उनकी चाल काम आएगी और न उनकी सहायता की जाएगी।

:47

तथा निश्चय उन लोगों के लिए जिन्होंने अत्याचार किया, उस (आख़िरत) से पहले भी एक यातना है। परंतु उनमें से अक्सर लोग नहीं जानते।

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और (ऐ नबी!) आप अपने पालनहार का आदेश आने तक धैर्य रखें। निःसंदेह आप हमारी आँखों के सामने हैं। तथा जब आप उठें, तो अपने रब की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता बयान करें।

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तथा रात के कुछ भाग में फिर उसकी पवित्रता का वर्णन करें और सितारों के चले जाने के बाद भी।